DAP उर्वरक की डिमांड रबी के सीजन में बम्पर डिमांड रहती है. ऐसे में मार्केट में खाद की किल्लत भी बहुत रहती है.इस बार भी कुछ ऐसा ही समय सामने आया है. DAP खाद के लिए मारामारी चल रही है. मार्केट में तो बहुत से खाद मौजूद है परन्तु किसान इस पर जल्दी भरोसा नहीं जता रहे है. इसलिए भी DAP की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। रबी की बुआई का सीजन आ गया है और अब DAP की फिर से दिक्कत आने वाली है.
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DAP का उत्पादन
मिली जानकारी के अनुसार सीजन में डीएपी का स्टॉक अक्टूबर में 21.76 लाख मीट्रिक टन था. तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो 15 लाख मीट्रिक टन कम है. पिछले साल देश के पास 37.45 लाख मीट्रिक टन स्टॉक था. स्टॉक की कमी को देखते हुए दामों में भी तेजी देखने को मिल रही है.
इस वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) में भारत में 15.9 लाख टन डीएपी (डायअमोनियम फॉस्फेट) का आयात हुआ, जो पिछले वर्ष के 32.5 लाख टन से काफी कम है। सरकार का अनुमान है कि रबी सीजन में करीब 52 लाख मीट्रिक टन डीएपी की मांग होगी, जिसमें से 20 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन किया जाएगा और शेष का आयात किया जाएगा।
कहाँ हो रहा DAP का इस्तेमाल
कंपनियां घाटे में चल रही हैं, जबकि इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जून से सितंबर के बीच डीएपी की कीमतें 509 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 620 से 640 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। भारत में डीएपी की अधिकतम खुदरा कीमत 27,000 रुपये प्रति टन है, जबकि सरकार प्रति टन 21,676 रुपये की सब्सिडी देती है। आयातित डीएपी की लागत 61,000 रुपये प्रति टन आ रही है, जबकि कंपनियों की आमदनी केवल 53,900 रुपये प्रति टन है, जिससे कंपनियों को प्रति टन 7,100 रुपये का घाटा हो रहा है।
टेस्ला भी कर रही उपयोग
इसी बीच, टेस्ला जैसी प्रमुख EV कंपनियां लिथियम आयन फॉस्फेट बैटरी का इस्तेमाल बढ़ा रही हैं। 2023 में वैश्विक स्तर पर 40% डीएपी उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में रॉक सल्फेट और सल्फ्यूरिक एसिड का आयात किया गया। 3 साल पहले, केवल 6% EV में फॉस्फोरस का उपयोग हो रहा था, जो अब बढ़कर काफी ज्यादा हो गया है।
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चीन ने 2023 में दो-तिहाई बैटरियों को फॉस्फोरस आधारित बनाने का निर्णय लिया है और भारत ने उसी वर्ष 17 लाख टन डीएपी का आयात चीन से किया। भारत ने मोरक्को और रूस के बाद सबसे अधिक डीएपी का आयात चीन से किया। निर्यात पर रोक लगाने के लिए चीन ने डीएपी की कीमतें 20-25% तक बढ़ा दीं, जिसके कारण भारत में खाद संकट गहरा गया।
किसानो के सामने भी समस्या
हालांकि, डीएपी के कुछ विकल्प जैसे सुपर खाद और यूरिया के मिश्रण के रूप में उपलब्ध हैं, लेकिन किसानों की रुचि उनमें कम है। एनपीके (NPK) जैसे विकल्प भी मौजूद हैं, लेकिन किसान उनकी ओर आकर्षित नहीं हो रहे। इसके कारण, डीएपी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और देश में इसके संकट की स्थिति बनी हुई है।